क्या ख़्वाबों में भी तूने ये सोचा है क़ाफ़िर,
क्यों आतिशे क़ौमे हिजाज़ का निशाना बना तू ?
छिन गया तख़्त तिरा तुझसे ज़ेरे खंजर,
क्यों जहां में मज़लूमियत का फ़साना बना तू ?
जुर्म तिरा भी है, तेरे वायज़ का भी, उसकी दींदारी का भी
के जुर्रत को भूल चैनो अमन का दीवाना बना तू।
दिले सदचाक को कर पक्का, खसलते मोमीन को समझ,
शाने खुद्दारी कर पैदा, जुनूने मज़हब का पता कर,
क़ुव्वते तलवार को परख, क़ौमे हुनूद खोज ले,
अरे, परेशां है तो परेशानी का सबब पता कर।
क्यों आतिशे क़ौमे हिजाज़ का निशाना बना तू ?
छिन गया तख़्त तिरा तुझसे ज़ेरे खंजर,
क्यों जहां में मज़लूमियत का फ़साना बना तू ?
जुर्म तिरा भी है, तेरे वायज़ का भी, उसकी दींदारी का भी
के जुर्रत को भूल चैनो अमन का दीवाना बना तू।
दिले सदचाक को कर पक्का, खसलते मोमीन को समझ,
शाने खुद्दारी कर पैदा, जुनूने मज़हब का पता कर,
क़ुव्वते तलवार को परख, क़ौमे हुनूद खोज ले,
अरे, परेशां है तो परेशानी का सबब पता कर।